Sunday, November 14, 2010

वक्त नहीं ....










हर ख़ुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हसी के लिए वक्त नहीं |
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िन्दगी के लिए वक्त नहीं |

माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं |
सारे रिश्तों को हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक्त नहीं |

सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लिए वक्त नहीं |
गैरों की क्या बात करें,
जब अपनों के लिए ही वक्त नहीं |

आँख में है नींद बड़ी,
पर सोने का वक्त नहीं |
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक्त नहीं |

पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े,
की थकने का भी वक्त नहीं |
पराये एहसासों की भी क्या कदर करें,
जब अपने सपनों के लिए ही वक्त नहीं |

तू ही बता ऐ ज़िन्दगी,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा |
की हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक्त नहीं......


2 comments:

  1. आज के समय को सुन्दरता से परिभाषित किया है। सच्चे भाव, सुन्दर कविता!

    ReplyDelete
  2. सही लिखा है बिल्कुल, अब देखो न, कल ही पढ़ ली थी ये पोस्ट लेकिन कमेंट करने के लिये भी वक्त नहीं:)
    well done, keep it up.

    ReplyDelete