"क्या ज़रुरत है लड़की को पढ़ाने-लिखाने की,बड़े होकर घर ही तो संभालना है,घर का काम सिखाओ,.........."
ये सब बातें आप सबको आम सुनने को मिल जाती होंगी |
दरअसल हमने अपनी विचारधारा,मानसिकता ही ऐसी बना ली है, की शिक्षा ग्रहण करने हकदार लड़कों को पहले माना गया है | जबकि ये हक़ बराबरी का है | कुछ फीसदी लडकियां ही पढाई पूरी कर पाती है,जबकि 70 फीसदी से ज्यादा अल्पज्ञानी ही रह जाती है | इसी विषय से मिलता जुलता एक उदहारण आज पढ़ा,जो आप सबसे बांटना चाहता हूँ |
" एक गाँव में एक स्त्री थी | उसके पति आई टी आई में कार्यरत थे | वह अपने पति को पात्र लिखना चाहती थी पर अल्पज्ञानी होने के कारण उसे पता नहीं था की पूर्णविराम कहाँ लगाना है | इसीलिए जहाँ मन करता वहीँ पूर्णविराम लगाती |
मेरे प्यारे जीवनसाथी मेरा प्रणाम आपके चरणोंमे | आप ने अभी तक चिट्ठी नहीं लिखी मेरी सहेली को | नौकरी मिल गयी है हमारी गाय ने | बछड़ा दिया है दादा जी ने | शराब शुरू कर दी मैंने | तुमको बहुत ख़त लिखे पर तुम नहीं आये कुत्ते के बच्चे | भेड़िया खा गया दो महीने का राशन | छुट्टी पर आते वक्त ले आना एक खूबसूरत औरत | मेरी सहेली बन गयी है | और इस वक्त टी वि पर गाना गा रही है हमारी बकरी | बेच दी गयी है तुम्हारी माँ | हमें बहुत तंग करती है तुम्हारी बहन | सिरदर्द से लेती है तुम्हारी पत्नी |"