Thursday, November 25, 2010

एक अल्पज्ञानी की चिट्ठी...

 
"क्या ज़रुरत है लड़की को पढ़ाने-लिखाने की,बड़े होकर घर ही तो संभालना है,घर का काम सिखाओ,.........."
ये सब बातें आप सबको आम सुनने को मिल जाती होंगी |
दरअसल हमने अपनी विचारधारा,मानसिकता ही ऐसी बना ली है, की शिक्षा ग्रहण करने हकदार लड़कों को पहले माना  गया है | जबकि ये हक़ बराबरी का है | कुछ फीसदी लडकियां ही पढाई पूरी कर पाती है,जबकि 70 फीसदी से ज्यादा अल्पज्ञानी ही रह जाती है | इसी विषय से मिलता जुलता एक उदहारण आज पढ़ा,जो आप सबसे बांटना चाहता हूँ |
 
 
" एक गाँव में एक स्त्री थी | उसके पति आई टी आई में कार्यरत थे | वह अपने पति को पात्र लिखना चाहती थी पर अल्पज्ञानी होने के कारण उसे पता नहीं था की पूर्णविराम कहाँ लगाना है | इसीलिए जहाँ मन करता वहीँ पूर्णविराम लगाती |
मेरे प्यारे जीवनसाथी मेरा प्रणाम आपके चरणोंमे | आप ने अभी तक चिट्ठी नहीं लिखी मेरी सहेली को | नौकरी मिल गयी है हमारी गाय ने | बछड़ा दिया है दादा जी ने | शराब शुरू कर दी मैंने | तुमको बहुत ख़त लिखे पर तुम नहीं आये कुत्ते के बच्चे | भेड़िया खा गया दो महीने का राशन | छुट्टी पर आते वक्त ले आना एक खूबसूरत औरत | मेरी सहेली बन गयी है | और इस वक्त टी वि पर गाना गा रही है हमारी बकरी | बेच दी गयी है तुम्हारी माँ | हमें बहुत तंग करती है तुम्हारी बहन | सिरदर्द से लेती है तुम्हारी पत्नी |"
 

Thursday, November 18, 2010

आखिर हमारा देश चल कैसे रहा है?


आप सबने राजधानी दिल्ली में हुए ५ मंजिला इमारत हादसे को तो सुना ही होगा...? किसे ज़िम्मेदार ठहराया जाये  इन सब के लिए? ईमारत के मालिक,नेताओं,पुलिस,...आखिर किसे? रोज़ नए नाम सामने आयेंगे,नयी फ़ाइलें बनेंगी,....और फिर होगा क्या......आप कब इससे वाकिफ है| हिम्मत कहें तो उनकी है,जो ७२ घंटों के बाद भी यही आस लिए बैठे है,शायद कोई अपने की खबर मिले....खबर चाहे जैसी भी हो,सब झेलने को तैयार है| सर्दी की बारिश में भी अपनी जगह से नहीं हिल रहे| कितने घर ख़तम हो गए इस हादसे में....कोई अपने ही परिवार के ८ सदस्यों को जला कर आ रहा है तो एक १० साल का बच्चा अचानक ही अपने परिवार मैं सबसे बड़ा हो गया,जिसके सर पर अपने २ छोटे भाई-बहेन की ज़िम्मेदारी है|
रोज़ नए नए घोटाले,"कॉमन वेल्थ,आदर्श सोसाइटी,रुचिका केस..." और आज एक और नयी बात सुनी "भारत पहले नो. पे है,जिसका सबसे ज्यादा काला धन स्विस बैंक में है(६५,२२५ अरब),(हर साल तकरीबन देश के हर नागरिक को २,००० रुपये,३० साल तक मिलें तो बनता है इतना रूपया|
ठोक बजाकर ये तो हम कह देते हैं,"इंडिया इस डेवेलोपिंग कंट्री".......पर शिक्षा बजेट से ६ गुना ज्यादा "२ ग" घोटाला है| 
नेहरु जी ने कहा था "घूसखोरों को बिजिली के खम्बों के साथ बांधकर मारना चाहिए" पर शायद खम्बे ही कम पड़ जायेंगे| 
"आखिर हमारा देश चल कैसे रहा है? सब हमारे सामने है......कौन करप्ट नहीं है....|
"उनको श्रधांजलि  अर्पित करता हूँ, जिन्होंने दिल्ली इमारत हादसे में अपनी जान गँवाई|"
"WHAT IF OUR INDIA WILL BE..




Sunday, November 14, 2010

वक्त नहीं ....










हर ख़ुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हसी के लिए वक्त नहीं |
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िन्दगी के लिए वक्त नहीं |

माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं |
सारे रिश्तों को हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक्त नहीं |

सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लिए वक्त नहीं |
गैरों की क्या बात करें,
जब अपनों के लिए ही वक्त नहीं |

आँख में है नींद बड़ी,
पर सोने का वक्त नहीं |
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक्त नहीं |

पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े,
की थकने का भी वक्त नहीं |
पराये एहसासों की भी क्या कदर करें,
जब अपने सपनों के लिए ही वक्त नहीं |

तू ही बता ऐ ज़िन्दगी,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा |
की हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक्त नहीं......


Friday, November 5, 2010

"शुभ दीपावली"

                                      
                                  दीपावली के पावन अवसर पर सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनायें

दीप जलते जगमगाते रहे,
हम आपको आप हमें याद आते रहे.
जब तक ज़िन्दगी है,
दुआ है हमारी,
आप चाँद की तरह जगमगाते रहें.`
सफलता कदम चूमती रहे,
ख़ुशी आसपास घूमती रहे
यश इतना फैले की कस्तूरी शर्मा जाए ,
लक्ष्मी का किरपा इतनी हो की बालाजी भी देखते रह जाएँ...

Monday, October 18, 2010

इच्छापूर्ति का वरदान

                           

देवताओं और दानवों को क्या चाहिये था और क्या मिला, यह तो समुद्र मंथन में तय हो गया था।  बचा इंसान, तो उसकी इच्छाओं की पूर्ति अभी भी बाकी थी। सॄष्टि के पालनहार हरि विष्णु भी सोच रहे थे कि मनुष्य की सोच कहाँ तक पहुँच सकती है। आखिर एक दिन उन्होंने मनुष्य को बुलाया और उसकी हर इच्छा पूर्ण करने का वचन दिया। दिन और समय निश्चित हुआ और मनुष्य पूरी तैयारी के साथ निश्चित समय से पहले ही अपनी लम्बी लिस्ट ले कर पहुंचा और रोटी से शुरू होकर अपनी कामनाये बढ़ाते बढ़ाते जीवन की सब सुख सुविधायें मांग बैठा। लालची प्रवृत्ति के कारण मांगें थम ही नहीं रही थीं। अचानक उसकी नज़र विष्णुजी के उस थैले पर पडी, जो उसकी सभी कामनायें पूरी कर रहा था। लालच भरी निगाहें विष्णुजी से बोली “प्रभु आपको इन-सब सामान की क्या ज़रूरत? मुझे यही दे दीजिये, आप भी इसके बोझ से थक गये होंगे”। मुस्कुराकर हरि ने वो थैला उसे थमा दिया और चालाकी से उसमें से एक छोटी सी पोटली अपने पैर के अंगूठे तले छुपा ली।
सबके जाने के बाद लक्ष्मीजी के यह पूछ्ने पर कि ”इसमें ऐसा क्या है?” विष्णु जी ने कहा “इसमें शान्ति है, जो सिर्फ़ मेरी शरण में है और अगर कोई इसे पाना चाहता है, तो उसे वो सब छोडकर मेरी शरण में आना पडेगा।“